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दूर करेगी हर समस्या शनि अमावस्या
शनिदेव एक आदर्श दंडाधिकारी हैं। वह अच्छे के साथ बुरा नहीं करते और बुरे के साथ अच्छा नहीं करते। इसलिए शनिदेव से भयभीत होने के बजाय अपने आचरण और कर्मों को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शनि अमावस्या भी शनिदेव को प्रसन्न करने का एक बड़ा अवसर है…
ज्योतिष शास्त्र में शनि देव दंडाधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वह प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। वह शुभ कर्म करने वालों को शुभ फल देते हैं और केवल दुष्कर्मों में संलिप्त व्यक्ति को ही दंडित करते हैं, लेकिन आम जनमानस शनिदेव को एक निर्दयी और कठोर देवता के रूप में स्वीकार करता है। यह धारणा सच्चाई से कोसों दूर है। यदि कोई व्यक्ति अपने आचरण को शुद्ध रखता है और शुभ कर्मों का संपादन करता है तो उसके लिए शनिदेव सहृदय बन जाते हैं और उसका जीवन सुख और समृद्धि से भर देते हैं। शनिदेव एक आदर्श दंडाधिकारी हैं। वह अच्छे के साथ बुरा नहीं करते और बुरे के साथ अच्छा नहीं करते। इसलिए शनिदेव से भयभीत होने के बजाय अपने आचरण और कर्मों को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शनि अमावस्या भी शनिदेव को प्रसन्न करने का एक बड़ा अवसर है। शनि अमावस्या के दिन भगवान सूर्य देव के पुत्र शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए शनि अमावस्या एक दुर्लभ दिन व महत्त्वपूर्ण समय होता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं में शनि अमावस्या की काफी महत्ता बतलाई गई है। इस दिन व्रत, उपवास और दान आदि करने का बड़ा पुण्य मिलता है। शनि देव महर्षि कश्यप के पुत्र सूर्य देव की संतान हैं। उनकी माता का नाम छाया है। उनके गुरु स्वयं भगवान शिव हैं और उनके मित्र हैं- काल भैरव, हनुमान, बुध और राहु। समस्त ग्रहों के मुख्य नियंत्रक हैं शनि देव। उन्हें ग्रहों के न्यायाधीश मंडल का प्रधान न्यायाधीश कहा जाता है। शनि देव के निर्णय के अनुसार ही सभी ग्रह मनुष्य को शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं।
पितृदोष से मुक्ति
हिंदू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्त्व है और अमावस्या यदि शनिवार के दिन पड़े तो इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। शनिदेव को अमावस्या अधिक प्रिय है। उनकी कृपा का पात्र बनने के लिए शनि अमावस्या को सभी को विधिवत आराधना करनी चाहिए। भविष्यपुराण के अनुसार शनि अमावस्या शनि देव को अधिक प्रिय रहती है। शनि अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जिन व्यक्तियों की कुंडली में पितृदोष या जो भी कोई पितृ दोष की पीड़ा को भोग रहे होते हैं, उन्हें इस दिन दान इत्यादि विशेष कर्म करने चाहिए। यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है, क्योंकि शनि देव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बड़ी सहजता से हो जाता है।
पूजन विधि
शनि अमावस्या के दिन पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनिदेव का आवाहन और दर्शन करना चाहिए। शनि देव को नीले रंग के पुष्प, बिल्व वृक्ष के बिल्व पत्र, अक्षत अर्पण करें। भगवान शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र ऊं शं शनैश्चराय नमः, अथवा ऊं प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन सरसों के तेल, उड़द की दाल, काले तिल, कुलथी, गुड़ शनि यंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री को शनिदेव पर अर्पित करना चाहिए और शनि देव का तैलाभिषेक करना चाहिए। शनि अमावस्या के दिन शनि चालीसा, हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए।
महत्त्व
शनि अमावस्या के दिन शनिदेव को प्रसन्न करके व्यक्ति शनि के कोप से अपना बचाव कर सकते हैं। पुराणों के अनुसार शनि अमावस्या के दिन शनिदेव को प्रसन्न करना बहुत आसान होता है। शनि अमावस्या के दिन शनि दोष की शांति बहुत ही सरलता कर सकते हैं। इस दिन महाराज दशरथ द्वारा लिखे गए शनि स्रोत का पाठ करके शनि की कोई भी वस्तु जैसे- काला तिल, लोहे की वस्तु, काला चना, कंबल, नीला फूल दान करने से शनि साल भर कष्टों से बचाए रखते हैं।
बाधा निवारक शनि मंत्र
सर्वबाधानिवारक शनि गायत्री मंत्र
ऊं भगभवाय विद्महे मृत्युरुपाय धीमहि, तन्नो शनिः प्रचोदयात।
प्रतिदिन श्रध्दानुसार शनि गायत्री का जाप करने से घर में सदैव मंगलमय वातावरण बना रहता है।
वैदिक शनि मंत्र
ऊं शन्नोदेवीरमिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभस्रवन्तुनः।
यह शनि देव को प्रसन्न करने का सबसे पवित्र और अनुकूल मंत्र है। इसकी दो माला सुबह- शाम करने से शनि देव की भक्ति व प्रीति मिलती है। कष्ट निवारण शनि मंत्र नीलांबर-
शूलधरः किरीटी गृघ्रस्थितस्त्रसकरो धनुष्मान।
चर्तुभुजः सूर्यसुतः प्रशान्तः सदाऽस्तुं मह्यं वरंदोऽल्पगामी॥
इस मंत्र से अनावश्यक समस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्रतिदिन एक माला सुबह- शाम करने से शत्रु चाह कर भी नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।
सुख-समृद्धि दायक शनि मंत्र-
कोणस्थरूपिंगलो वभ्रु कृष्णौ रौद्रान्त को यमः।
सौरिः शनैश्चरौ मंदः पिप्पलादेन संस्तुतः॥
इस शनि स्तुति का प्रातः काल पाठ करने से शनि जनित कष्ट नहीं व्यापते और सारा दिन सुख पूर्वक बीतता है।
शनि पत्नी नाम स्तुति-
ऊं शं शनैश्चराय नमः ध्वजनि धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा॥ ऊं शं शनैश्चराय नमः
यह बहुत ही अद्भुत और रहस्यमय स्तुति है। यदि कारोबारी, पारिवारिक या शारीरिक समस्या हो, तब इस मंत्र का विधि विधान से जाप और अनुष्ठान किया जाए तो कष्ट कोसों दूर रहेंगे।
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