Sunday, 23 February 2014

75 Chamba

चंबा का लक्ष्मीनारायण मंदिर

asthaचंबा में लगभग 75 मंदिर हैं और इनके बारे में अलग-अलग किवदंतियां हैं। इनमें से कई मंदिर शिखर शैली के हैं और कई पर्वतीय शैली के। शिल्प व वास्तुकला की दृष्टि से ये मंदिर अद्वितीय हैं…
चंबा भारत के हिमाचल प्रदेश का एक नगर है। रावी नदी के किनारे 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चंबा पहाड़ी राजाओं की प्राचीन राजधानी थी। चंबा को राजा साहिल वर्मन ने 920 ई. में स्थापित किया था। इस नगर का नाम उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री चंपावती के नाम पर रखा। चारों ओर से ऊंची पहाडि़यों से घिरे चंबा ने प्राचीन संस्कृति और विरासत को संजो कर रखा है। प्राचीन काल की अनेक निशानियां चंबा में देखी जा सकती हैं। चंबा इतिहास, कला, धर्म और पर्यटन का मनोहारी मेल है। किसी घाटी की ऊंचाई पर खड़े होकर देखें तो समूचा चंबा शहर भी किसी अनूठी कलाकृति की तरह ही लगता है। ढलानदार छतों वाले मकान, शिखर शैली के मंदिर, हरा-भरा विशाल चौगान और इसकी पृष्ठभूमि में यूरोपीय प्रभाव लिए महलों का वास्तुशिल्प सहसा ही मन मोह लेता है। चंबा में मंदिरों की बहुतायत होने के कारण इसे मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। चंबा में लगभग 75 मंदिर हैं और इनके बारे में अलग-अलग किवदंतियां हैं। इनमें से कई मंदिर शिखर शैली के हैं और कई पर्वतीय शैली के। शिल्प व वास्तुकला की दृष्टि से ये मंदिर अद्वितीय हैं। लक्ष्मीनारायण मंदिर समूह तो चंबा का सर्वप्रसिद्ध देवस्थल है। यह मंदिर पांरपरिक वास्तुकारी और मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। चंबा के 6 प्रमुख मंदिरों में यह मंदिर सबसे विशाल और प्राचीन है। कहा जाता है कि सबसे पहले यह मंदिर चंबा के चौगान में स्थित था। बाद में इस मंदिर को राजमहल, जो वर्तमान में चंबा जिले का राजकीय महाविद्यालय है, के साथ स्थापित कर दिया गया। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल वर्मन ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था। यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है। मंदिर में एक विमान और गर्भ गृह है। मंदिर का ढांचा मंडप के समान है। मंदिर की छतरियां और पत्थर की छत इसे बर्फबारी से बचाती है । इस मंदिर समूह में महाकाली, हनुमान, नंदीगण के मंदिरों के साथ-साथ विष्णु व शिव के तीन-तीन मंदिर हैं। सिद्ध चर्पटनाथ की समाधि भी यहीं है। मंदिर में अवस्थित लक्ष्मीनारायण की बैकुंठ मूर्ति कश्मीरी व गुप्तकालीन निर्माण कला का अनूठा संगम है। इस मूर्ति के चार मुख व चार हाथ हैं। मूर्ति की पृष्ठभूमि में तोरण है, जिस पर 10 अवतारों की लीला चित्रित है। चंबा की कलात्मक धरोहर में यहां की पनघट शिलाओं को भी शामिल किया जा सकता है। ये शिलाएं चंबा जनपद के ग्रामीण आंचलों में बनी बावडि़यों और नौणा जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों के किनारे आज भी प्रतिष्ठित देखी जा सकती हैं। ये शिलाएं चंबा की गौरवपूर्ण संस्कृति व इतिहास का आईना भी हैं। खुले आकाश तले प्रतिष्ठित होने के बावजूद ये अपना मौलिक स्वरूप बरकरार रखे हुए हैं। कुछ विशिष्ट शिलाएं तो भूरि सिंह संग्रहालय में भी प्रदर्शित की गई हैं। चंबा की सांस्कृतिक धरोहर में यहां के मेलों को भी शामिल किया जा सकता है। वैसे तो इस जनपद में बहुत से मेलों का आयोजन होता है, लेकिन मिंजर मेला और मणिमहेश मेला दो ऐसे आयोजन हैं, जिन्होंने देशव्यापी ख्याति अर्जित की है। चंबा मिंजर मेला जहां अंतराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है, वहीं मणिमहेश मेला को राज्य स्तरीय दर्जा हासिल है। मिंजर मेला उन दिनों लगता है जब सावन की हल्की-हल्की फुहारों से लोग भीग रहे होते हैं। इसे सावन की फुहारों में लगने वाला मेला भी कहा जाता है। इस मेले में आयोजित लोक नृत्यों में तो समूची चंबा घाटी की संस्कृति देखने को मिलती है।

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