Sunday, 23 February 2014

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एक पवित्र तीर्थस्थल मणिकर्ण

पौराणिक कथा है कि अपने विवाह के पश्चात एक बार शिवजी तथा माता पार्वती घूमते-घूमते इस जगह आ पहुंचे। उन्हें यह जगह इतनी अच्छी लगी  कि  वे यहां  ग्यारह हजार वर्ष  तक निवास करते रहे। इस जगह के लगाव के कारण ही जब शिवजी ने काशी नगरी की स्थापना की, तो वहां भी नदी के घाट का नाम मणिकर्णिका घाट ही रखा….
 मणिकर्ण हिमाचल में पार्वती नदी की घाटी मे बसा एक पवित्र तीर्थस्थल है। हिंदू तथा सिक्ख समुदाय का पावन तीर्थ, जो कुल्लू से 35 कीमी.  दूर समुद्र तट से 1650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां आराम से बस या टैक्सी से जाया जा सकता है।  पौराणिक कथा है कि अपने विवाह के पश्चात एक बार शिवजी तथा माता पार्वती घूमते-घूमते इस जगह आ पहुंचे। उन्हें यह जगह इतनी अच्छी लगी  कि  वे यहां  ग्यारह हजार वर्ष  तक निवास करते रहे। इस जगह के लगाव के कारण ही जब शिवजी ने काशी नगरी की स्थापना की, तो वहां भी नदी के घाट का नाम मणिकर्णिका घाट ही रखा। इस क्षेत्र को अर्द्धनारीश्वर क्षेत्र भी कहते हैं  यह समस्त सिद्धियों का देने वाला स्थान है, ऐसी मान्यता है यहां के लोगों में। कहते हैं कि यहां प्रवास के दौरान एक बार स्नान करते हुए मां पार्वती के कान की मणि पानी में गिर तीव्रधार के साथ पाताल पहुंच गई। मणि ना मिलने से परेशान मां ने शिवजी से कहा। शिवजी को नैना देवी से पता चला कि मणि नागलोक के देवता शेषनाग के पास है। उसके मणि न लौटाने के दुस्साहस से शिवजी क्रोधित हो गए। तब उनके क्रोध से भयभीत हो शेषनाग ने जोर की फुंकार मार कर मणियों को मां के पास भिजवा दिया। इन मणियों के कारण ही इस जगह का नाम मणिकर्ण पड़ा। शेषनाग की फुंकार इतनी तीव्र थी कि उससे यहां गर्म पानी का स्रोत उत्पन्न हो गया। यह एक अजूबा ही है कि कुछ फीट की दूरी पर दो अलग-अलग तासीरों के जल की उपस्थिति है। एक इतना गर्म है कि यहां मंदिर गुरुद्वारे के लंगरों का चावल कु छ ही मिनटों मे पका कर धर देता है तो दूसरी ओर इतना ठंडा की हाथ डालो तो हाथ सुन्न हो जाता है।  यही वह जगह है जहां महाभारत काल में शिवजी ने अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए किरात के रूप में उससे युद्ध किया था। यहीं पर सिक्ख समुदाय का भव्य गुरुद्वारा भी  है, जहां देश-विदेश से लोग आकर पुण्य लाभ करते हैं।

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