संघर्ष की सीमाएं तोड़ती‘सीमा शर्मा’
मंडी की सीमा शर्मा एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने चकाचौंध को छोड़ कर तूफानों में दीया जलाने की कोशिश की है। सीमा शर्मा आज एक ऐसा संस्थान चला रही हैं, जिसे उत्तर भारत की पहली गैर सरकारी नाट्य अकादमी होने का गौरव प्राप्त है। मंडी जिला के छोटे से गांव सतोहल में संचालित कर रही हैं। जहां आज हिमाचल ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश, कोलकाता, वेस्ट बंगाल सहित अन्य कितने ही राज्यों से प्रशिक्षु आकर अभिनय और निर्देशन सीख रहे हैं। यहां से निकले कलाकार अब तक कई धारावाहिकों और अन्य मंचों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। इस संस्थान के अंदर अपना एक पुस्तकालय होने के साथ ही प्रशिक्षुओं के रहने और खाने-पीने तक का प्रबंध है। प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी में आज भी थियेटर और अभिनय को जिंदा रखने का काम यही एक संस्थान कर रहा है। सीमा शर्मा अपने परिवार की पहली ऐसी सदस्य थीं, जो रंगमंच की तरफ आगे बढ़ीं। हालांकि उस समय में मंडी में थियेटर या रंगमंच का नामोनिशान तक नहीं था, लेकिन फिर सीमा शर्मा को इस तरफ झुकाव बढ़ता ही गया। मंडी कालेज में भाषा संस्कृति विभाग एवं नाट्य अकादमी दिल्ली की एक वर्कशॉप ने सीमा शर्मा का सबकुछ ही बदल दिया। इसी वर्कशॉप में न सिर्फ सीमा को यह एहसास हुआ कि उनका जन्म थियेटर के लिए हुआ है, बल्कि इसी वर्कशॉप में उनकी मुलाकात थियेटर की दुनिया की बड़ी हस्ती सुरेश शर्मा से भी हुई। जो कि आगे चल कर उनके जीवन साथी भी बने। सीमा शर्मा के पति सुरेश शर्मा भी पत्नी के हर पग पर उनका साथ दे रहे हैं। ऐसे समय में भी उन्होंने रंगमंच को ही अपना भविष्य चुन लिया। लेकिन इसके बाद एक समय ऐसा भी आया, जब उनके सारे साथी मंडी को छोड़ कर आगे बढ़ते गए। पिछले सात आठ वर्षों में मंडी में रंगमंच को जो पहचान मिली है, उसको खत्म होने का खतरा पैदा हो गया। सीमा बताती हैं कि उस समय उनके पति सुरेश शर्मा को भी दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य अकादमी में नौकरी मिल चुकी थी, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने मंडी को छोड़ कर जाने का फैसला टाल दिया। 1987 से वह अपने अंदर जिस सपने को लेकर चली हुई थीं, उन्होंने उसे पूरा करने के लिए अपनी ही एक नाट्य अकादमी की विधिवत रूप से स्थापना कर दी। सीमा शर्मा बताती हैं कि 1998 में उन्होंने उत्तर भारत के पहले गैर सरकारी हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान और रंगमंडल की विधिवत औपचारिक शुरुआत की। सीमा शर्मा का संस्थान एक वर्ष का कोर्स प्रशिक्षुओं को करवाता है और सीमा के साथ ही देश भर से टीचर यहां आकर यह टे्रनिंग देते हैं। सीमा के विद्यालय में मंडी के बच्चों के लिए निःशुल्क ड्रामा सिखाया जाता है। इस नाट्य अकादमी की बदौलत ही कहा जा सकता है कि मंडी में आज भी थियेटर का नाम जिंदा है। मंडी के दर्जनों बच्चे और बाहर से प्रशिक्षु थियेटर में अपना भविष्य तलाश रहे हैं। सीमा शर्मा कहती हैं कि इस संस्थान की स्थापना जिस उद्देश्य को लेकर उन्होंने की थी, वह आज उसकी तरफ बढ़ रही हैं और उनके मन में इस बात की तसल्ली है कि उन्होंने चकाचौंध को छोड़ कर हिमाचल में अभिनय की ज्योति को जलाए रखा है।
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