Saturday, 22 February 2014

Himachal ki star 1999

SHIVRAJ SHARMA EDITOR  ANNITHISWEEK  MAGAZINE

एवरेस्ट पर डोलती ‘डिकी डोलमा’

डिकी डोलमा राष्ट्रीय शीतकालीन खेलों में आल ओवर बेस्ट प्लेयर रह चुकी हैं। जबकि वर्ष 1999 में दक्षिण कोरिया में आयोजित एशियाड में उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करने का भी गौरव मिला। जापान और न्यूजीलैंड समेत कई देशों में आयोजित स्कीइंग प्रतियोगिता में डिकी डोलमा ने भाग लेते हुए दुनिया में हिमाचल का मान बढ़ाया है…
किसी ने खूब कहा है कि हौंसलों से ही उड़ान हुआ करती है। मनाली से ताल्लुक रखने वाली डिकी डोलमा किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं, पहाड़ सरीखे हौसले के बूते ही महज 19 वर्ष की आयु में डोलमा ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को जीत कर इतिहास रच दिया था। वर्ष 1993 में डोलमा के नाम दर्ज हुआ यह विश्व रिकार्ड हालांकि आगे चलकर नेपाल की 16 वर्षीय विंकीपा शारपा ने तोड़ दिया, लेकिन रिकार्ड तो फिर टूटने के लिए ही बना करते हैं। डोलमा को भी उनका यह विश्व रिकार्ड टूटने का मलाल नहीं है। अलबत्ता उन्हें नाज है कि दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला के नाते एवरेस्ट पर चढ़ने का उन्हें ही सबसे पहले गौरव हासिल हुआ है। डिकी डोलमा राष्ट्रीय शीतकालीन खेलों में आल ओवर बेस्ट प्लेयर रह चुकी हैं। जबकि वर्ष 1999 में दक्षिण कोरिया में आयोजित एशियाड में उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करने का भी गौरव मिला। जापान और न्यूजीलैंड समेत कई देशों में आयोजित  स्कीइंग प्रतियोगिता में डिकी डोलमा ने भाग लेते हुए दुनिया में हिमाचल का मान बढ़ाया है। प्रदेश के अग्रणी मीडिया ग्रुप दिव्य हिमाचल के साथ बातचीत में डिकी डोलमा गुजरे कल की मधुर स्मृतियों में खो सी जाती हैं। वह बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही स्कीइंग में काफी रुचि रही है, अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान से जुड़कर उन्होंने पर्वतारोहण की बारीकियों को सीखा और फिर अढ़ाई माह में कड़ी मशक्कत करते हुई 8848 मीटर ऊंची एवरेस्ट की चोटी का फतह करने में कामयाब रहीं। उनके साथ मनाली की दीपू शर्मा और  राधा देवी भी वर्ष 1993 में एवरेस्ट अभियान का हिस्सा रही हैं। डोलमा कहती हैं कि सबसे पहले दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला के रूप में एवरेस्ट जीतने का रिकार्ड कायम करने की खुशी को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता था, वह वाकई में यादगार लम्हें थे। डोलमा अपनी इस सफलता का श्रेय पर्वतारोहण संस्थान के इंस्ट्रक्टर जगत ठाकुर और टेक्निकल एडवाइजर बलदेव ठाकुर को देना नहीं भूलती हैं। डोलमा के मुताबिक हिमाचल और देश में स्कीइंग, पर्वतारोहण तथा अन्य साहसिक गतिविधियों के लिए ठोस आधारभूत ढांचा उपलब्ध नहीं है। हुक्मरानों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
छोटी सी मुलाकात
पर्वतारोहण की तरफ रूझान कैसे हुआ?
बचपन से ही स्कीइंग में रुचि थी, थोड़ी न और हां के बीच घर से भी साहसिक गतिविधियों में भागीदारी के लिए सहयोग मिलने लगा। पिता स्वर्गीय संडुप राम तथा माता छेरिंग डोलमा से मिला हौसला हर कदम पर काम आया है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में किसका योगदान रहा?
पर्वतारोहण संस्थान मनाली के इंस्ट्रक्टर जगत ठाकुर और टेक्निकल एडवाइजर बलदेव ठाकुर से पर्वतारोहण की बारीकियां सिखते हुए आगे बढ़ने में मदद मिली।
समाज खासकर महिलाओं के लिए आपका क्या संदेश है?
स्कीइंग, पर्वतारोहण या फिर जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता का मूल मंत्र दृढ़ इच्छा के साथ मेहनत है। यदि आप मेहनती हैं और बुलंद हौसलों की मालिक हैं तो सफलता आपके कदम चूमती है।

पर्वतारोहण 
संस्थान में इंस्ट्रक्टर के पद पर तैनात डिकी डोलमा को वर्ष 1994 में ही यहां पर नौकरी मिल गई। वर्ष 1999 में मनाली के रहने वाले विशाल कश्यप से वह परिणय सूत्र में बंध गईं। विशाल भी अच्छी स्कीइंग कर लेते हैं। बेटी अनुष्क ा सातवीं और बेटा अंशुमान कश्यप दूसरी कक्षा में पढ़ता है। डोलमा बताती हैं कि बेटी अनुष्का को स्कीइंग और पर्वतारोहण जैसी साहसिक गतिविधियों में काफी दिलचस्पी है और मैं बच्चों को उनकी रुचि के मुताबिक आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हूं।मनाली के विशाल पर आया डोलमा का दिल

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