पिछले दस सालों से हिमाचल की शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ी आरजू ठाकुर ने बैडमिंटन की दुनिया में कदम रखने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा है। प्रदेश की पूर्व नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी कामिनी शांडिल का 15 साल तक बैडमिंटन चैंपियन का रिकार्ड तोड़ने वाली आरजू ठाकुर प्रदेश की ऐसी पहली बैडमिंटन खिलाड़ी है, जिसके नाम प्रदेश का अंडर-13, अंडर-16 व अंडर-19 के अलावा ओपन सीनियर चैंपियन व ऑल ओवर चैंपियन का प्रदेश का खिताब लगातार कायम है। मूल रूप से जिला सिरमौर के ददाहू कस्बा निवासी 19 वर्षीय आरजू ठाकुर ने बैडमिंटन के क्षेत्र में जिला सिरमौर में ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का नाम राष्ट्रीय स्तर पर अंकित कर दिया है। केवल चौथी कक्षा से ही हाथ में बैडमिंटन की रैकेट लेने वाली आरजू ठाकुर ने लगातार 2003 से बैडमिंटन में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। ददाहू निवासी इंद्र ठाकुर के घर 15 मई, 1994 को जन्मी आरजू ठाकुर ने वर्ष 2003 में जब बैडमिंटन की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पहली बार शिरकत की, तो उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। आरजू ने वर्ष 2004 में अंडर-13 के सिंगल व डबल वर्ग में राज्य स्तरीय खिताब अपने नाम किया। उसके बाद 2004 में भी बैडमिंटन का खिताब आरजू के नाम रहा तथा 2005 में अंडर-13, अंडर-16 दोनों खिताब अपने नाम किए। 2005 में ही आरजू ने अंडर-19 डबल में प्रदेश भर में दूसरा स्थान प्राप्त किया। वर्ष 2006 का तीनों श्रेणियों का ओवर ऑल चैंपियन का खिताब भी आरजू के नाम ही है। वर्ष 2007 में आरजू ने अंडर-16, अंडर-19 के अलावा सीनियर ओपन चैंपियनशिप में भी गोल्ड मेडल अर्जित कर खिताब अपने नाम किया है। प्रदेश की जानी मानी बैडमिंटन खिलाड़ी आरजू ठाकुर ने इससे पूर्व प्रदेश की नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुकी वर्तमान में कालेज में म्यूजिक प्रो. कामिनी शांडिल के लगातार चैंपियन रहने के रिकार्ड को भी तोड़ दिया है। यही नहीं आरजू ठाकुर एकल में नॉर्थ इंडिया की अंडर-16 व अंडर-19 की भी बैडमिंटन चैंपियन है। आरजू ठाकुर ने लगातार प्रैक्टिस करते हुए भारत के शीर्ष दस बैडमिंटन खिलाडि़यों में अंडर-19 में स्थान अर्जित किया है। इसके अलावा स्पोर्ट्स अथॉरिटी आफ इंडिया की वर्ष 2008 में हिमाचल में तथा वर्ष 2010 में आगरा में संपन्न हुई राष्ट्रीय ओपन महिला चैंपियनशिप में भी आरजू ने गोल्ड मेडल हासिल किया। वर्ष 2012 में पूना में संपन्न हुई अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन प्रतियोगिता में भी आरजू ने बेहतर प्रदर्शन किया। भले ही इस प्रतियोगिता में आरजू कोई स्थान अर्जित नहीं कर पाई, परंतु अपने खेल से अंतरराष्ट्रीय खिलाडि़यों को भी आरजू ने प्रभावित किया। दुर्भाग्यवश वर्ष 2012 में ही आरजू का बैंगलोर में एक एक्सीडेंट हुआ, जिस कारण वह करीब एक वर्ष तक किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाई। आरजू को इस बात का रंज है कि दुर्घटना के कारण वह इंडियन बैडमिंटन लीग की रैंकिंग प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाई। वर्तमान में डीएवी कालेज चंडीगढ़ में बीए द्वितीय वर्ष में शिक्षा ग्रहण कर रही आरजू ने हाल ही में इंटर यूनिवर्सिटी का खिताब भी अपने नाम किया है। साथ ही 2013 में संपन्न हुई राज्य ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप भी पुनः अपने नाम की है।
पिता से ली ट्रेनिंग
आरजू ठाकुर के कोच उनके पिता ही हैं। आरजू ठाकुर के पिता इंद्र ठाकुर ने ददाहू में मां रेणुकाजी बैडमिंटन अकादमी खोली हुई है, जिसमें करीब 18 खिलाड़ी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। इनमें से दस खिलाड़ी ऐसे हैं जो वर्तमान में नेशनल प्रतियोगिता खेल रहे हैं। इंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि आरजू जब चौथी कक्षा में थी तो अपने बड़े भाइयों को देखकर उसका रुझान भी बैडमिंटन की ओर बढ़ा।
लक्ष्य
मूल रूप से ददाहू निवासी शारीरिक शिक्षक इंद्र सिंह ठाकुर के घर जन्मी आरजू ठाकुर चार भाई-बहनों में से तीसरे स्थान पर है। आरजू के बड़े भाई विकास ठाकुर भी बैडमिंटन के राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं तथा हाल ही में विश्वविद्यालय चैंपियन रह चुके हैं। आरजू के दूसरे बड़े भाई आशीष ठाकुर राष्ट्रीय चैंपियन रह चुके हैं, जबकि आरजू के छोटे भाई लक्ष्य ठाकुर भी बैडमिंटन के जाने-माने राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं तथा वर्तमान में आरजू व लक्ष्य ठाकुर का ऑल इंडिया में 15वां रैंक है। अब आरजू ठाकुर का एक ही लक्ष्य है और वह है भारतीय टीम का नेतृत्व करना और देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना।
छाटी सी मुलाकात
बैडमिंटन के क्षेत्र में रुचि कैसे बढ़ी?
बड़े भाई व पिता की मेहनत के चलते। बैडमिंटन के मैदान में उनको खेलते हुए देख मेरी भी रुचि बैडमिंटन की ओर बढ़ती गई।
सफलता के लिए अहम क्या है?
चाहे खेल मैदान हो या फिर कोई भी क्षेत्र, मेहनत ही सफलता की कुंजी है। खेल में मेहनत ने ही मुझे इस मुकाम पर पहुंचा पाया है।
प्रतिदिन कितने घंटे अभ्यास करती हैं?
नियमित रूप से सुबह व शाम सात से आठ घंटे बैडमिंटन मैदान में रहती हूं। उसके पश्चात पढ़ाई व अन्य कार्य करती हूं।
युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगी?
मैं चाहती हूं की युवा पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी अपनी रुचि दिखाएं। मेहनत से किसी एक गेम को लक्ष्य बनाएं। दृढ़ संकल्प ही उन्हें लक्ष्य तक पहुंचा सकता है। खेल के मैदान में सफलता के लिए कोई शार्टकट नहीं है।
सूरत पुंडीर, नाहन
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