TODAY
Saturday, 22 February 2014
kavita 12
chavinder sharma
कविता
सुबह- सुबह
आ जाता सूरज,
दंगा नहीं मचाता सूरज।
न आंधी न धूल पसीना,
सर्दी में मन भाता सूरज।
नरम दूब पर छाया रहता,
यहां- वहां इतराता सूरज।
दिन भर मेरे साथ खेलता,
शाम ढले घर जाता सूरज।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment