आशा कुमारी ने वर्ष 1966 में भुट्टिको में शॉल व टोपी को बनाना सीखा। लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि जीवन के उतार-चढ़ाव में यही उनका प्रोफेशन बन जाएगा…
अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ कुल्लू जिला में हुनरमंद हाथों की भी कोई कमी नहीं है। जी हां, अगर मन में आसमान की बुलंदियों को छूने का इरादा हो तो फिर समाज में किसी भी लक्ष्य को पाना मुश्किल नही हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है कुल्लू की प्रसिद्ध समाज सेवी व बुनकर के क्षेत्र में महिलाओं की शान कहे जाने वाली आशा कुमारी ने। विभिन्न रंगों के बॉर्डर्स से सजी कुल्लवी टोपी हो या शॉल। कुल्लू की आशा कुमारी का हाथों में आकर इनका रूप रंग निखर जाता है और यहीं से आर्थिक स्वावलंबन का रास्ता भी खुलता है। अब उनके इस प्रोफेशन को उनके बड़े बेटे ने भी चुन लिया है। शौकिया तौर पर कुल्लू की आशा कुमारी ने वर्ष 1966 में भुट्टिको में शाल व टोपी को बनाना सीखा। लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि जीवन के उतार-चढ़ाव में यही उनका प्रोफेशन बन जाएगा। वर्ष 1990 में आशा कुमारी के जीवन में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। 1990 में अचानक उनके पति स्व. सोहन लाल चौहान की कुल्लू के आखाड़ा बाजार में बस की चपेट में आ जाने से एक दर्दनाक हादसे में मृत्यु हो गई। उस समय परिवार की स्थिति अच्छी नहीं थी तथा परिवार का सारा खर्च उनके पति की आजीविका से चलता था। उस समय वह वैटरिनरी अस्पताल में नौकरी करते थे तथा दोनों ही बेटे उस समय चंडीगढ़ में पढ़ते थे, लेकिन परिवार के हालात को देखकर उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर कुल्लू वापस लौटना पड़ा। लेकिन आशा कुमारी ने अपना जबरदस्त हौसला दिखाते हुए घर में ही हथकरघा मशीन को लगाकर शालें व टोपियों को बनाना शुरू कर दिया। लेकिन उस समय कच्चा माल लाने के लिए उनके पास इतने ज्यादा पैसे भी नहीं थे कि वह शाल व टोपियों को बनाने के साथ-साथ अपने परिवार का भी सही ढंग से पालन-पोषण कर सके । लेकिन उन्होंने हिम्मत रखते हुए अपने परिवार के बाकी सदस्यों को भी आगे बढ़ने का हौसला दिया। एक माह पति की पेंशन उन्हें आने लगी जिस पैसे से उन्होंने कच्चा माल खरीद कर अपने छोटे से उद्योग को स्थापित करने की कोशिश की। उन्होंने कुल्लू की कुछ अन्य महिलाओं को भी इस उद्योग से जोड़कर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने की कोशिश कर अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रोत्साहित किया। परिवार के हालात को देखते हुए घर के बड़े बेटे ने भी अपनी मां के साथ हाथ बंटाना शुरू कर दिया, जोकि वर्तमान समय में इसी क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। धीरे-धीरे जब उनके पास कुछ पैसे जमा हो गए तो उन्होंने अपने छोटे बेटे को एक बार फिर पढ़ने के लिए शिमला विश्वविद्यालय में भेज दिया, जो कि आज कालेज में एक प्रोफेसर के पद पर तैनात हैं।
छोटी सी मुलाकात
आपका इस क्षेत्र में कैसे रूझान बढ़ा?
बनुकर का काम सीखना मेरा शौक था, लेकिन जैसे ही परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटा तो शौक के तौर पर सीखा हुआ काम मेरा प्रोफेशन बन गया।
इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए आपको हौसला कैसे मिला?
इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का हौसला परिवार के सदस्यों ने मिला। परिवार पूरी तरह से बिखरने की कगार पर था, तब परिवार के सभी सदस्य एक जुट हो गए तथा सबने एक साथ काम कर यह दर्शा दिया कि अगर हाथों से कोई काम सीखा हो तो जीवन में वह कभी न कभी जरूर काम आता है।
प्रदेश की महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं?
प्रदेश में अगर महिलाएं अपने आप को कमजोर न समझें तो उनमें यह काबिलीयत है कि वे आगे बढ़कर काफी नाम कमा सकती हैं। जिस काम को करने में महिलाओं का शौक है उस क्षेत्र में उन्हें हमेशा आगे बढ़ना चाहिए।
संदीप शर्मा, कुल्लू
No comments:
Post a Comment