समाज में कई परिवार को टूटने से बचाकर पुनः परिवार की मुख्यधारा से जोड़कर वापस खुशियां उस परिवार में आएं, तो इससे अधिक खुशी और क्या हो सकती है। सिरमौर जिला के ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी संतोष कपूर को यदि रानी झांसी की उपाधि दी जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। समाज में महिला अधिकारों के लिए हमेशा संघर्षरत रहीं संतोष कपूर ने कभी भी पुरुषों के अधिकारों का विरोध नहीं किया, बल्कि महिलाओं के समाज में अधिकारों को लेकर एक मिशाल हाथ में ली। मूल रूप से जिला सिरमौर के बोगधार के गांव गराड़ी निवासी संतोष कपूर ने स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1990-1991 में देश भर में चले राष्ट्रीय साक्षरता मिशन से जुड़कर एक अक्षर सैनिक के रूप में समाज में कदम रखा। संतोष कपूर ने 1990 के दशक में ही ‘देश को जानो देश को बदलो’ विषय पर समाज की बदहाली को लेकर एक सर्वे भी किया। वर्ष 1994 से संतोष कपूर अखिल भारतीय जनवादी समिति से जुड़ीं तथा तबसे लेकर पिछले करीब 20 वर्षों से महिला उत्थान को कार्यरत है। महिलाओं के अधिकारों की बात हो या फिर कन्या भू्रण हत्या, दहेज उत्पीड़न सभी विषयों पर अधिकारों की लड़ाई में संतोष सबसे आगे रही हैं। कई वर्षों तक जनवादी महिला समिति की राज्य महासचिव की जिम्मेदारी बखूबी निभाने वालीं संतोष कपूर वर्तमान में समिति की प्रदेश अध्यक्ष हैं। हाल ही में जिला सिरमौर के शिशि-क्यारी मिडल स्कूल में शिक्षक द्वारा स्कूल की ही नाबालिग छात्रों के साथ यौन उत्पीड़न के मामले को भी संतोष कपूर ने प्रमुखता से राज्य आयोग व राज्यपाल के समक्ष उठाया। शराब के ऐसे दर्जनों ठेकों को तालाबंदी तक पहुंचाया, जो शैक्षणिक संस्थानों, देवालयों व गांव के मध्य ऐसे स्थानों पर खोले गए थे, जहां लोगों को आपत्तियां थीं। समाज सेवा के दौरान संतोष कई-कई दिनों तक अपने परिवार से दूर रहती हैं। संतोष कपूर अपने पति व पुत्र के साथ अमरपुर मोहल्ला, शिमला मार्ग के समीप नाहन में रहती है। कंधे पर बैग, हाथ में लोगों की समस्याओं से भरी फाइल, पैरों में स्पोर्ट्स शू तथा लंबे-लंबे कदम संतोष की आरंभिक पहचान है। चेहरे पर हमेशा मुस्कान, तपाक जवाब व किसी से भी बेबाक होकर महिलाओं के अधिकारों व उत्पीड़न के बारे बात करने का जज्बा। संतोष कपूर एक पहाड़ी बेटी जरूर है, परंतु समस्याओं के पहाड़ को लांघना अब उसकी नियति बन चुकी है।
छोटी सी मुलाकात
आप हमेशा महिलाओं के उत्पीड़न व अधिकारों को क्यों उठाती हैं।
महिलाओं के अधिकारों को उचित मंच तक पहुंचाने तथा सामज में महिलाओं का उत्पीड़न समाप्त करना ही अब जीवन का लक्ष्य है।
पुरुष वर्ग के गुस्से का तो सामना नहीं करना पड़ता।
मैंने कभी भी पुरुषों का विरोध नहीं किया। हमेशा कामकाजी महिलाओं की समस्याओं को उठाया, घरेलू हिंसा को रोका तथा ऐसा करने में पुरुष वर्ग का सहयोग लिया।
परिवार के साथ कैसे तालमेल बिठा पाती हैं।
अकसर समाज में दौड़ भाग रहती है। पति व बेटे से फोन पर उस दौरान संपर्क रहता है।
समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं।
महिलाओं को अपने अधिकारों, महिला हिंसा, घरेलू हिंसा, कन्या भू्रण हत्या, महिला शिक्षा के मामले में आगे आना होगा। समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को बदलना होगा।
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