बचपन से ही लोगों की सहायता करने का जुनून रखने वाली मुधरवीणा ने कुल्लू जिला के ही नहीं अपितु अन्य जिलों के भी करीब 1200 घरों को टूटने से बचाया है। समाज सेवा करने का निर्णय उन्होंने तब लिया, जब वह अपनी गुरु कुल्लू की प्रसिद्ध समाज सेविका स्व. चंद्रआभा से मिलीं। मधुरवीण स्व. चंद्रआभा को ही अपना प्ररेणा स्रोत व आदर्श मानती हैं। मधुरवीणा ने बताया कि उन्हें खुद भी कोई दिक्कत होती है तो वह अपनी दिक्कत को हल करने से पहले लोगों की समस्याओं को दूर करने का हर संभव प्रयास करती हैं…
मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुईं मधुरवीणा के पिता तेज राम और माता तेजी देवी दोनों ही किसान हैं तथा माता- पिता के पढ़े-लिखे होने के चलते उन्होंने भी वकील की पढ़ाई कर काउंसिलिंग के माध्यम से टूटते रिश्तों को एक अपने नाम जैसे मधुरवीणा ने मधुर बनाया। कुल्लू शहर की मधुरवीणा ने जिला के विभिन्न समाजसेवियों से प्रेरणा लेकर लोगों की सेवा करने का ही प्रोफेशन चुना है। मधुरवीणा हमेशा यही सोचती थी कि अपनों के लिए तो हर कोई करता है, कभी दूसरों के लिए भी कर के देखें, कितनी खुशी मिलती है। बचपन से ही लोगों की सहायता करने का जुनून रखने वाली मुधरवीणा ने कुल्लू जिला के ही नहीं, अपितु अन्य जिलों के भी करीब 1200 घरों को टूटने से बचाया है। समाज सेवा करने का निर्णय उन्होंने तब लिया जब वह अपनी गुरु कुल्लू की प्रसिद्ध समाज सेविका स्व. चंद्रआभा से मिलीं। मधुरवीण स्व. चंद्रआभा को ही अपना प्ररेणा स्रोत व आदर्श मानती हैं। मधुरवीणा ने बताया कि उन्हें खुद भी कोई दिक्कत होती है, तो वह अपनी दिक्कत को हल करने से पहले लोगों की समस्याओं को दूर करने का हर संभव प्रयास करती हंै। मधुरवीणा का कहना है कि कई मामलों तथा महिलाओं की समस्याओं को सुनकर खुद उनके भी रौंगटें खड़े हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि वह जहां कहीं भी ऐसे केसों को हल करने के लिए जाती हैं, तो वह लोगों को यही सलाह देती हैं कि कानूनी प्रक्रिया काफी लंबी होती है तथा इस प्रक्रिया से उन्हें बचकर अपनी समस्याओं को घर की चारदीवारी के अंदर ही निपटा लेना चाहिए। 22 सालों से समाज के विकृत रूप को साकार रूप देने वाली मधुरवीणा का कहना है कि समाज में कई तरह के विकार आ रहे हैं। उसका सीधा प्रभाव बच्चों पर भी पड़ रहा है। भावी पीढि़यां भी अपने अभिभावकों की राह पर अग्रसर होती हैं। मधुरवीणा उस सशक्त महिला का नाम है, जो हर मामलों का समाधान करना जानती हैं। उनका कहना है कि समाज में पति-पत्नी के संबंधों की कडि़यां टूट रही हैं या फिर वे शिथिल पड़ रही हैं। इसमें न सिर्फ पति ही दोषी है, कई मामलों में पत्नियों की भी महत्त्वाकांक्षा सामने आ रही है। इसमें अलग विचारधाराएं, घमंड की समस्याएं, अलग परंपराएं भी शामिल हैं। काउंसलर मधुर वीणा उन मामलों में चट्टान की भांति खड़ी रहती हैं और समस्याओं का निदान करके ही छोड़ती हंै। मधुरवीणा ने बताया कि कई मामलों में जब कोर्ट भी कोई परिणाम नहीं निकालता है, तो वह कई बार कोर्ट के मामलों का भी उचित समाधान कर चुकी है। उन्होंने बताया कि वह अभी तक 12 सौ से ज्यादा परिवारों के मामलों का समाधान कर चुकी हंै और कई परिवारों को आपस में जोड़ चुकी हंै। उन्होंने कहा कि हम कई बार पति-पत्नी को यह बताते हैं कि उनके कारण उनकी संतान का भविष्य भी खराब हो सकता है। ऐसे मामलों के लिए समाज भी काफी हद तक जिम्मेदार होता है। अगर कहीं दांपत्य संबंधों की डोर कट रही है, तो पहला अधिकार उनके सगे-संबंधियों का ही बनता है लेकिन वहां से भी उन्हें अच्छा रिस्पांस न मिलने के कारण वे या तो कोर्ट की शरण में आते हैं या फिर महिला कल्याण मंडल की दहलीज पर कदम रखते हैं। उन्होंने कहा कि 20 फीसदी मामले ऐसे भी होते हैं, जो काफी मुश्किल होते हंै और उन्हें सुलझाने के लिए परिवार परामर्श केंद्र भी कुछ नहीं कर पाता है। ऐसे में दंपति को चाहिए कि वह अपने बच्चों की तरफ भी ध्यान दें वरना कहीं उनकी गलती का दुष्प्रभाव बच्चों पर न पड़ जाए।
टूटते घरों को बचाना मधुरवीणा का सपना
उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न केसों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उन्हें आज भी याद है, जब वह कुल्लू में ही एक पति-पत्नी के टूटे रिश्ते को दोबारा जोड़ने के लिए गई हुई थीं। उस समय पति-पत्नी के बीच इतने वैचारिक मतभेद पैदा हो गए थे कि उन्हें जोड़ना खुद उन्हें भी काफी मुश्किल लग रहा था। फिर जैसे-तैसे करके उन्होंने दोनों पक्षों को समझा बुझा कर फिर एक करवाया तथा वह आज दिन तक ठीक से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह महिलाओं की समस्या को तभी दूर कर पाती हैं, जब वे उनकी जगह अपने आप को देखती हैं। अपनों के लिए तो हर कोई करता है, कभी दूसरों के लिए भी करके देखो, कितनी खुशी मिलती है।
आपने समाज सेवा के ही क्षेत्र का चुनाव क्यांे किया ?छोटी सी मुलाकात
किसी का दुःख- दर्द मुझसे सहन नहीं होता है। चाहे कोई मेरा दुश्मन ही क्यों न हो? फिर परिवार से मुझे समाज सेवा करन के ही संस्कार मिले। किसी भी महिला की समस्या को हल करने से पहले मैं खुद को उस महिला के स्थान पर देखती हूं। जब किसी की समस्या हल हो जाती है, तो मुझे काफी सुकून मिलता है, जिसे मैं शब्दों मंे बयां नहीं कर सकती हैं।
इस क्षेत्र में आप अपनी प्रेरणा स्रोेत किसे मानती हैं ?
कुल्लू की एक प्रसिद्ध समाज सेविका हुआ करती थी चंद्रआभा। उनके साथ काम कर उनसे काफी कुछ सीखने को मिला। वह हमेशा मुझसे यही कहती थीं कि लोगों की समस्या को जब दिल से हल करने की कोशिश करोगी, तब जरूर कामयाबी मिलेगी।
महिला होने के चलते आपके जीवन मंे कभी बड़ी चुनौतियां भी आई ?
कई बार लेडीज केसों की सेटलमेंट को लेकर मुझे काफी चुनौतियांे का सामना करना पड़ा। दोनों पक्षों के बीच कई बार समझौता करवाते समय लड़ाई-झगड़े तक नौबत आ पहुंचती थी। लेकिन मंैने हमेशा अपने साहस व संयम को बनाए रखा तथा दोनों ही पक्षों को भविष्य व उनके बच्चों के बारे में बताकर उनके समझौते करवाए।
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