हेमलता के हौसले से जीवित हुई मृत मां
शिखर पर
पोलियो से ग्रस्त किसी महिला का जीवन किसी अभिशाप से कम नहीं होता है, लेकिन मंडी जिला की ऐसी महिला भी हैं, जिनके लिए यह अभिशाप आज वरदान बन चुका है। मंडी की अपाहिज हेमलता पठानिया ने न सिर्फ अपना और अपने जैसे विकलांगों का सुनहरा भविष्य लिखा है, बल्कि संघर्ष का एक प्रतीक बनकर भी उभरी हैं। हेमलता पठानिया ने अपने संघर्ष से न सिर्फ कागजों में मृत अपनी मां को जिंदा किया, बल्कि दूसरों को भी सहारा दिया। हेमलता पठानिया जब 6 महीने की थीं, तो उन्हें पोलियो ने जकड़ लिया। हेमलता की इस बेबसी ने उसे और उसकी मां को सुसराल वालों की प्रताड़ना का कारण बना दिया। इस घड़ी में किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। हेमलता की मां के लिए संघर्ष की शुरुआत हो गई। उन्होंने जैसे- तैसे अपनी बेटी का पालन पोषण किया। जैसे-जैसे हेमलता पठानिया बड़ी होती गईं उन्हेंे इस बात का एहसास होना शुरू हो गया कि विकलांगों को यह समाज किस नजर से देखता है। जब हेमलता बड़ी हुई तो इस बात का पता चला कि रिश्तेदारों ने मां को मृत घोषित कर संपत्ति के हिस्से से भी बाहर कर दिया है। जबकि उसकी मां जीवित थीं और उसके संग ही रह रही थीं। इस बात का पता चलने के बाद हेमलता ने अपने रिश्तेदारों के कई बार हाथ पांव जोडे़ और उनसे अपनी मां का हक मांगा, लेकिन जब किसी का दिल नहीं पसीजा तो हेमलता ने अपने ही मन को मजबूत बनाते हुए अपने जीवन को संघर्ष की भट्ठी में डालने का निर्णय ले लिया। हेमलता ने इस निर्णय के खिलाफ मंडी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। तब हेमलता की जिंदा मां को कोर्ट ने कानूनी तौर पर कागजों में भी जिंदा करने के आदेश दिए। पांच साल तक चले मुकदमे के बाद हेमलता की मां रमा देवी को उसके रिश्तेदारों की संपत्ति में उसका हक मिला। 2004 में हेमलता ने हिमालयन विकलांग कल्याण संस्था का हाथ थामा और 2005 में इस संस्था की मंडी जिला की अध्यक्ष भी बन गईं। इसके बाद 2006 में उन्हें फिर यह जिम्मेदारी मिली। वहीं अब 2009 से लगातार हेमलता पठानिया इस संस्था की अध्यक्ष और जिला विकलांगों के दिलों में जगह बनाए हुई हैं। रेडक्रास सोसायटी और अन्य संस्थाओं के साथ मिल कर उनकी संस्था विकलांगों के कल्याण में भागीदारी निभाती आ रही हैं।
आधा दर्जन से अधिक को रोजगार
हेमलता पठानिया ने अब गद्दे, रजाई व तलाई बनाने की छोटी सी यूनिट चलाई हुई है। इसमें आधा दर्जन से अधिक को रोजगार भी दिया है। यहां भी तीन लोग ऐसे हैं जो कि विकलांग हैं, लेकिन किसी के सहारे नहीं हैं।
विकलांग बच्चों के लिए खुलवाया स्कूल
हेमलता पठानिया ने 2008-09 में मंडी की एक पंचायत में 14 ऐसे विकलांग बच्चों को ढंूढ निकाला था, जो कि स्कूल नहीं जाते थे।
पहली आरटीआई कार्यकर्ता
हेमलता पठानिया पहली महिला सक्रिय आरटीआई कार्यकर्ता भी हैं। गैर सरकारी संगठनों को आरटीआई के दायरे मंे लाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है।
कभी भी सरकारी व्यवस्था से नहीं डरी हेमलता
हेमलता कभी भी सरकार व प्रशासन से टकराने से पीछे नहीं हटी हैं। जब किसी ने नहीं सुनी तो फिर आरटीआई को हेमलता ने अपना हथियार बनाया है।
मुलाकात
महिलाओं के लिए आरटीआई के क्या मायने हैं?
आरटीआई महिलाओं के लिए एक हथियार की तरह है। अपने हक की लड़ाई लड़ने में महिलाओं को आरटीआई का सबसे अधिक सहारा है। इसकी मदद से मैंने कई महिलाओं को उनका हक दिलाया है।
कोई ऐसी घटना जिसने आपको सबसे ज्यादा सुकून दिया हो?
जंजैहली क्षेत्र की 100 प्रतिशत अपंग पवना देवी को न्याय दिलाना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि रही है। पवना देवी को आरटीआई की मदद से न सिर्फ मकान बनाने के लिए सरकार से सहायता राशि मिली, बल्कि लंबी लड़ाई लड़ने के बाद उनको सरकारी नौकरी भी मिल सकी।
विकलांग महिलाओं से क्या कहेंगी?
मेरा यही कहना है कि अगर ईश्वर ने हमसे कुछ छीना है तो हमें दिया भी बहुत कुछ है। हमारे जैसी हिम्मत और लगन आम लोगों में कहां होती है। इसलिए मैं यही कहंूगी कि मेरी तरह विकलांग महिलाएं डरे नहीं और न ही पीछे हटें, बल्कि आगे बढ़ने की के बारे में ही सोचंे। अपने हर सपने को पूरा करें और दूसरी महिलाओं की भी सहायता करती रहें।
भविष्य की क्या योजना है?
हर जिला में विकलांग भवन खुलें और विकलांगों के लिए स्वरोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलें, यही मेरा प्रयास रहेगा। जहां भी विकलांगों के साथ अन्याय होगा, वहां उनकी लड़ाई लड़ने का
प्रयास करूंगी।
प्रयास करूंगी।
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