मार्कंडेय मंदिर
यहां ऋषि मार्कंडेय का सदियों पुराना मंदिर है। इस मंदिर में मार्कंडेय ऋषि की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के नीचे से प्राचीन काल से शीतल जल की धारा बहती हुई एक पवित्र चश्मे का रूप लेती है…
देवभूमि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला में बंदला पहाड़ी के नीचे पूर्व दिशा की तरफ ऋषि मार्कंडेय का मंदिर होने से यह स्थान मार्कंडेय तीर्थ के नाम से मशहूर है। इसे जेठा तीर्थ भी कहा जाता है। लोकमान्यता के अनुसार यदि कोई देशभर के सभी तीर्थ स्थानों के दर्शन करके भी आ जाए लेकिन जब तक वह व्यक्ति मार्कंडेय तीर्थ पर स्नान नहीं कर लेगा, तब तक उसका दूसरे तीर्थों पर माथा टेकना संपूर्ण नहीं माना जाएगा। इसीलिए श्रद्धालु चारों धाम की यात्रा करने के बाद घर पहुंचने से पहले मार्कंडेय तीर्थ पर स्नान करना पुनीत कार्य समझते हैं। यहां ऋषि मार्कंडेय का सदियों पुराना मंदिर है। इस मंदिर में मार्कंडेय ऋषि की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के नीचे से प्राचीन काल से शीतल जल की धारा बहती हुई एक पवित्र चश्मे का रूप लेती है। मार्कंडेय तीर्थ पर निःसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के उद्देश्य से भी श्रद्धापूर्वक स्नान करते हैं। संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होने पर मार्र्कंडेय मंदिर में ऋषि की मूर्ति पर टोपी पहनाई जाती है। फल-फूल भेंट चढ़ाए जाते हैं। मार्कंडेय ऋषि के मंदिर के पास ही एक गुफा है। कहा जाता है कि यह गुफा बंदला पहाड़ के दूसरी तरफ जाकर खुलती है। जहां दूसरी तरफ यह गुफा है, वह व्यास गुफा के नाम से मशहूर है। प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि गुफाओं आदि में रहकर ही तपस्या करते थे। लोक मान्यता के अनुसार मार्कंडेय ऋषि भी इसी मार्कंड गुफा में रहा करते थे। इस गुफा के पास ही रोहन्य व महोददी नाम की दो बावडिय़ां हैं। ये ऋषि की बहनों के रूप में जानी जाती हैं। मार्कंडेय तीर्थ पर स्नान करने के बाद श्रद्धालु इन बावडिय़ों में स्नान करना भी पुण्य कार्य समझते हैं। कुछ दूरी पर इंद्रदौण व वरिकृष्ण नाम के मंदिर हैं। जब भी कोई इस तीर्थ दर्शन हेतु आते हैं तो समीप के इन तीर्थों पर जाकर माथा टेकना नहीं भूलते। मार्कंडेय तीर्थ के साथ ही पानी का एक छोटा-सा कुंड है जहां स्नान करने से चर्मरोगों से पीडि़त मरीज ठीक हो जाते हैं। हर साल वैशाखी पर्व पर मार्कंडेय तीर्थ पर तीन दिन का मेला लगता है। मार्कंडेय पुराण में उनका जैमिनी व अन्य ऋषियों से हुआ संवाद आंखें खोलने वाला है। एक जगह उन्होंने कहा है। यहां शुभकार्य करने से ब्रह्मपद, इंद्रपद, देवलोक और मरुद्रणों का स्थान भी मिलता है। इसी प्रकार यहां निंदित कर्म करने से मनुष्य को मृग, पशु, सर्प तथा स्थावरों की योनि भी मिल सकती है। इस जगत में भारतवर्ष के सिवा कोई दूसरा देश कर्मभूमि नहीं है। देवताओं के मन में भी सदा यही अभिलाषा रहा करती है कि हम देवयोनि से भ्रष्ट होने पर भारतवर्ष में मनुष्य के रूप में उत्पन्न हों।
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