Sitaram Thakur Kullu annithisweek अनाथों की मां सुदर्शना ठाकुर
हौसले बुलंद हांे तो फिर सफलता खुद- बखुद कदम चूमती है। जी हां, कुल्लू के 17 मील में अनाथ बच्चों के लिए फरिश्ता बनकर उभरी राधा एनजीओ संस्था चलाने वाली सुदर्शना ठाकुर ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। वर्ष 1994 में अपने पति से पारिवारिक मतभेद के चलते अलग हुई सुदर्शना अनाथ बच्चों के लिए एक फरिशता बनकर सामने आई हंै।
खुद के परिवार को छोड़कर आई सुदर्शना का आज 31 बच्चों के साथ बहुत बड़ा परिवार है। वर्ष 1997 में एक समय ऐसा भी था जब सुदर्शना के पास खुद खाने के लिए एक दाना भी नहीं था। उन्हीं दिनों में एक 18 वर्ष की विधवा लड़की अपनी दो बेटियों के साथ सुदर्शना के पास पहुंची, भरी जवानी में विधवा हुई लड़की को देखकर सुदर्शना काफी प्रभावित हुई। दोनों ने एक दूसरे के दुख-दर्द को साझा करते हुए कड़ी मेहनत करने का फैसला लिया। प्रदेश के प्रतिष्ठित नंबर वन मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ से बातचीत करते हुए शायराना अंदाज में सुदर्शना ठाकुर ने कहा कि जिद है आसमां को जहां बिजलियां गिराने की… हमें भी जिद है वहां पर अपना आशियां बनाने की….। जब उनकी खुद की जेब में पैसे नहीं थे तब वह हर दिन ऊन की जुराबों की एक जोड़ी को बनाकर अगले दिन उसको बाजार में बेचती थी। जो पैसे उन्हें उस जुराब को बेचकर मिलते थे वह उन्हीं पैसों से ऊन का धागा भी खरीदती तथा खाने के लिए राशन भी। जिस घर में वह अपने नए परिवार के साथ रहने लगी, उस घर की छत थोड़ी सी बारिश के बाद ही टपकने लगती थी। तकरीबन तीन साल तक वह ऐसे ही हर रोज रात को ऊन की जुराबों का एक जोड़ा बनाकर सुबह उसे बेचकर अपना तथा अपने नए परिवार का पेट पालने लगी रही। थोड़े से पैसे बचाने के बाद वर्ष 2004 में उन्होंने अपनी एनजीओ को जिला प्रशासन से रजिस्टर्ड करवाया। आज भी वह अपने बच्चों के साथ बुनाई का काम करके ही गुजारा कर रही हैं। इस समय उनकी एनजीओ में 31 बच्चे हैं। जिसमें से 12 बच्चे दिल्ली पब्लिक स्कूल मनाली में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जबकि एक लड़की चंडीगढ़ में होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रही है। इसके साथ ही कुछ बच्चे डिग्री कालेज में पढ़ाई कर रहे हैं। अपने 31 बच्चों के साथ वह 17 मील में बनाए खुद के घर में पांच कमरों में ही रहकर गुजारा कर रही है। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था में एक बच्चा ऐसा है जब वर्ष 2000 में बादल फटने के कारण सोलंग में बाढ़ आई थी तो उसका सारा परिवार तबाह हो गया था। सुर्दशना ठाकुर के खुद के भी दो बच्चे हैं जोकि दिल्ली तथा बंगलूर में रहते हैं, लेकिन कभी कभार वे उनसे मिलने के लिए आते-रहते हैं।
विशेषताएं
सुदर्शना ठाकुर का कहना है कि वह एनजीओ को चलाने के लिए किसी से भी पैसे नहीं मांगती हैं। लेकिन कुछ लोग अब समय-समय पर उनकी सहायता करते रहते हैं, जिससे कि उन्हें और हौसला होता है। इस समय किसी दानी पुरुष ने इस संस्था को चलाने के लिए जमीन तो मुहैया करवा दी है, लेकिन भवन को बनाने के लिए अभी किसी के हाथ आगे नहीं बढ़े हैं।
कहां-कहां से आए यह 31 बच्चे
राधा एनजीओ में ये 31 बच्चे ऐसे थे जिनको अगर सुदर्शना ठाकुर सही राह नहीं दिखाती तो उनका जीवन अंधकारमय ही रहता। छोटे-छोटे बच्चे जो भीख मांगते थे, उन्होंने उन्हें स्कूल में दाखिल करवाकर उनके भविष्य को संवारने की कोशिश की। इसके साथ ही राधा एनजीओ मनाली क्षेत्र के करीब 12 एड्स के रोगियों को डाक्टरों के कहे अनुसार अच्छा खाना भी मुहैया करवा रही है, ताकि वे लोग भी अपना जीवन सही ढंग से व्यतीत कर सकें।
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