Saturday, 22 February 2014

Chamba ki shaan

हिमाचल की लाजवा‌ब सैरगाह डलहौजी

प्राकृतिक सौंदर्य, मनमोहक आबोहवाएं ढेरों दर्शनीय स्थलों और देवदार के घने जंगलों से घिरा डलहौजी हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन है। यह स्थान पांच पहाडियों-कठलौंग, पोट्रेन, तेहरा, बकरोटा और बलुन पर बसा है…
हिमाचल प्रदेश की पर्वतीय शृंखला की पांच पहाडि़यों पर बसी है खूबसूरत पर्वतीय सैरगाह डलहौजी। 19वीं सदी में अंग्रेज शासकों द्वारा बसाई गई यह जगह अपने ऐतिहासिक महत्त्व और प्राकृतिक रमणीयता के लिए जानी जाती है। डलहौजी में मौजूद शानदार गोल्फ कोर्स, प्राकृतिक अभयारण्य और तीन नदियों की जलधाराओं के संगम जैसे अनेक स्थलों के आकर्षण में बंधे हजारों पर्यटक हर वर्ष यहां आते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य, मनमोहक आबोहवाएं ढेरों दर्शनीय स्थलों और देवदार के घने जंगलों से घिरा डलहौजी हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन है। यह स्थान पांच पहाडियों-कठलौंग, पोट्रेन, तेहरा, बकरोटा और बलुन पर बसा है। समुद्रतल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान 13 किमी के छोटे-से क्षेत्रफल में फैला है।  एक ओर दूर-दूर तक फैली बर्फीली चोटियां तो दूसरी ओर चिनाब, ब्यास और रावी नदियों की कलकल करती जलधारा मनमोहक नजारा पेश करती है। यहां की प्राकृतिक रमणीयता और आबोहवा से अंग्रेज शासक भी बहुत प्रभावित थे। उन्होंने 1853 में चंबल के राजा से 5 पहाडि़यां खरीदीं और इस सैरगाह की नींव रखी। इसका नामकरण भारत के तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के नाम पर कर दिया गया। उसके बाद से अंगेज अधिकारी गर्मी की छुट्टियों का आनंद लेने यहां आने लगे। वैसे तो डलहौजी में हर कदम पर प्रकृति का अनूठा नजारा देखने को मिलता है, लेकिन कुछ स्थल विशेष रूप से प्रसिद्घ हैं।  इन्हें देखने के लिए हर वर्ष मार्च महीने के बाद से सैलानी आने लगते हैं। पंचपुला और सतधारा डलहौजी से केवल 2 किमी की दूरी पर स्थित है। पंचपुला का नाम यहां पर मौजूद प्राकृतिक कुंड और उस पर बने छोटे-छोटे पांच पुलों के आधार पर रखा गया है। यहां से कुछ दूरी पर एक अन्य रमणीय स्थल सतधारा झरना स्थित है।  किसी समय तक यहां 7 जलधाराएं बहती थीं, लेकिन अब केवल एक ही धारा बची है। बावजूद इसके इस झरने का सौंदर्य बरकरार है। माना जाता है कि सतधारा का जल, प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर और अनेक रोगों का निवारण करने की क्षमता रखता है।  यहां पर एक ऐतिहासिक बावड़ी भी है, जिसे सुभाष बावड़ी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि 1937 में सुभाषचंद्र बोस ने यहां पांच महीने गुजारे थे और वह इसी बावड़ी का पानी पीते थे। डलहौजी का मौसम वैसे तो साल भर सुहाना  रहता है, लेकिन सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से  जून और अक्तूबर से दिसंबर के बीच का माना जाता है।

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