माता कुनाल पत्थरी धाम
मुख्य रूप से यह मंदिर माता कपालेश्वरी देवी को समर्पित है। जनश्रुतियों के अनुसार इस धाम का संबंध माता सती के 51 शक्तिपीठों से जोड़ा जाता है। यह माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती का कपाल गिरा था। कपाल अर्थात खोपड़ी के ऊपर का भाग। इस तथ्य की पुष्टि करता है यहां एक शिला पर स्थापित कपाल के आकार का पत्थर का कुंड, जो वर्षा के जल से भरा रहता है…
हिमाचल प्रदेश की भूमि के कण- कण में देवी-देवताओं का वास है। इसी कारण यह धरती देव भूमि कहलाती है। यहां के लोग भी शांत व धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। यही कारण है कि यहां के पग- पग पर कोई ना कोई आस्था तीर्थ विद्यमान है। इसी श्रृंखला में हिमालय की धौलाधार पर्वतमाला का विशेष महत्त्व है। इस पर्वतमाला के आंचल में हमारे अनेक प्रमुख देवी -देवता अनेक रूपों में विराजमान हैं। माता दुर्गा के तो सबसे प्रसिद्घ शक्तिपीठ इस क्षेत्र की विशेष पहचान है। मां चिंतापूर्णी, मां ज्वाला, श्री वज्रेश्वरी देवी, माता बगुलामुखी, महामाया चामुंडा देवी के अतिरिक्त भगवती के अनेक रूपों के इस क्षेत्र में दर्शन होते हैं। यदि यह कहा जाए कि मातेश्वरी ने अपनी कृपा इस भूमि पर जम कर बरसाई है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। माता अंबे का ही एक रूप इस क्षेत्र में माता कुनाल पत्थरी के नाम से विख्यात है। स्थानीय लोगों में मां कुनाल पत्थरी के प्रति विशेष श्रद्घा है। माता का यह धाम धर्मशाला नगर के समीप विद्यमान है। शहर के शोर से दूर भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य यह देवीपीठ स्थापित है। यहां आकर मन को भरपूर शांति की अनुभूति होती है। मुख्य रूप से यह मंदिर माता कपालेश्वरी देवी को समर्पित है। जनश्रुतियों के अनुसार इस धाम का संबंध माता सती के 51 शक्तिपीठों से जोड़ा जाता है। यह माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती का कपाल गिरा था। कपाल अर्थात् खोपड़ी का ऊपर का भाग। इस तथ्य की पुष्टि करता है यहां एक शिला पर स्थापित कपाल के आकार का पत्थर का कुंड जो वर्षा के जल से भरा रहता है। मंदिर के गर्भगृह में सतह से लगभग तीन फुट की ऊंचाई पर यह कुंड एक विशाल शिला पर प्राकृतिक अवस्था में टिका हुआ है। इस शिला की माता कपालेश्वरी की पिंडी के रूप में पूजा होती है। कुंड के ठीक ऊपर गर्भगृह की छत में खुला स्थान रखा गया है जहां से वर्षा का जल इस कुंड में टपकता रहता है। वास्तव में यह पत्थर का कुंड एक बड़ी परात जैसा प्रतीत होता है। यही कारण है कि स्थानीय लोग पत्थर की इस परात रूपी आकृति के कारण माता को कुनाल पत्थरी नाम से उच्चारित करते हैं। माता का ऐसा स्वरूप अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। माता के इस कुंड का जल विशेष प्रभाव वाला माना जाता है। यह जल कभी सूखता या खराब नहीं होता। न ही इस जल में कोई कीड़ा या जाला उत्पन्न होता है। यह देखने में आया है कि लंबे समय तक वर्षा न होने के उपरांत भी इस कुंड का जल समाप्त नहीं होता। किसी भी प्रकार के रोग विशेष तौर पर पत्थरी इत्यादि के इलाज में इस कुंड के जल को रोगी व्यक्ति को पिलाया जाता है। मंदिर का प्रांगण काफी विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां राम दरबार के अतिरिक्त भगवान शिव शंकर को समर्पित एक शिवालय भी है। मंदिर में बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए धर्मशाला की भी व्यवस्था है। इस पूरे क्षेत्र में विशेष रूप से चाय की पैदावार की जाती है। धर्मशाला नगर से इस मंदिर की दूरी लगभग पांच किलोमीटर है। यह पूरा रास्ता चाय के बागानों के बीच से होकर जाता है। जो यहां के सौंदर्य को चार चांद लगा देते हैं। पहले इस स्थान पर छोटा सा मंदिर हुआ करता था। अधिकतर ग्वाले यहां आया करते थे। परंतु समय के साथ-साथ माता के नाम की प्रसिद्घि दूर तक फैली। लोग अपनी मनचाही मुरादें माता के आशीर्वाद से पाने लगे। इस प्रकार मंदिर का आकार भी बढ़ता गया। जिसमें समय के अनुसार अन्य निर्माण भी जुड़ते चले गए। नवरात्रों विशेष रूप से चैत्र मास में यहां मेले का आयोजन होता है। जिसमें दूर-दूर से लोग माता के दर्शन हेतु यहां आते हैं।
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